लेखक ने राजप्पा के टिकट इकट्ठा करने की तुलना मधुमक्खी से क्यों की?
राजप्पा ने मधुमक्खी की तरह टिकट जमा किए थे। जैसे मधुमक्खी थोड़ा—थोड़ा करके शहद जमा करती है। उसे बस टिकट जमा करने की धुन सवार रहती थी। हर शनिवार और रविवार को टिकट की खोज में लगा रहता। सुबह 8 बजे निकल जाता था। टिकट जमा करने वाले सारे लड़कों के घर के चक्कर लगाता था। जैसे ही स्कूल से घर लौटता बस्ता एक कोने में पटककर फिर से 4 मील दूर जाकर टिकट लाता। इसी तरह मधुमक्खियां भी रात—दिन मेहनत करती हैं और दूर—दूर जाकर शहद जमा करती हैं|